header ads

गौरैया l Hindi poem by Malabya Das

 गौरैया

मेरी खिड़की पर चहचहाती

मेरे दोस्त रोज भोर को आती,

नाचते, उछलते नन्हीं सी जान

जिंदगी की हरेक रंगों से सराबोर

तू कितना स्वच्छंद, कितनी आजाद

कितना निस्वार्थ, कितना निष्पाप...

तेरी दोस्ती कितने करीब

व्यथा जो अपनी मन की

हर कोई सुनाया करती,

जिंदगी की तू बनी रहे प्रेरणास्रोत

तू अपने पथ पर अडिग अविचल

करे नीड़ का निर्माण।

मालव्य दास

लेखक का पता:

मालव्य दास।

हिंदी शिक्षक,

छमरीया हाईस्कूल ।

शिक्षा खंड : छमरीया, कामरूप l


Post a Comment

1 Comments