अरुणिमा तुझे सलाम
उसकी आँखों में चमक थीं
बाँहों में ताकत,
लरखराती उसकी कदम उसे रोकती,
पर चार कदम आगे बढ़ाकर
वह पीछे मुरनेवाली नहीं थी।
यही जज़्बा उसकी पहचान बनी थी
लोग जहाँ से मुकर जातीं
वही से उसने नया जीवन शुरू कर दी थी,
और कोई होती तो
वही गुमनामी शुरू हो जाती !
उसकी कमजोरी उसकी ताकत बन गयी
आत्मविश्वास और लगन से
उसने जो दोस्ती कर ली....
मेहनत और अध्यवसाय से हाथ बाँट ली थी |
मंजिल अपनी आँखों के नज़दीक देखकर भी
वह टस से मस नहीं हुई ,
पाँव के खून से रंगीन चादर बिछा दी,
राष्ट्रीय झंडे को हिमालय की छाती में गाड़कर
आँखों से खुशियों की गंगा बहा दी।
अपनी कदमों से इतनी दूर सलांग लगा दी कि
एवरेस्ट की शिखर को छू ली ,
अरुणिमा तूने तो कमाल कर दी
अपने कृत्रिम पाँवों से भारत की शान बढ़ा दी।
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चित्रण : तन्द्रा दे
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