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ये जिंदगी | Hindi poem by Sunita Das

 ये जिंदगी



सुबह की सुनहरी मुस्कान लिए

नयी उमंग, नयी तरंग की चादर उड़े,

हर ख्वाहिशों को मंजिल तक पहुचाने

एक सुबह भीनि -भीनि बारिश की गुनगुनाते,

ले चले दूर गगन में 

बादलों के पीछे

ना थमी किसी की आहत से।


ये जिंदगी

वक्त का पैगाम लिए

आदत बनी बादलों को 

हाथों में समेतने की।

सुबह की सुनहरी मुस्कान लिए

ना थमी किसी की आहत से।


ये जिंदगी,

पंख लगाकर उड़ने लगी,

हजारों कहानियों के पीछे न भाग कर

एक नयी पन्नों पर

खुद की कहानी से

एक नयी उड़ान की दास्तान लिखने...

लेखिका की पता:

सुनिता दास । 

लक्षीनारायण उच्च बुनियादी विद्यालय।

शिक्षा खंड : रामपुर। (कामरूप)

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