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सुबह l Hindi Poem by Malabya Das

 सुबह


सुबह सुबह आंख खुली तो देखा

सुरज अपनी लालिमा बिखरने को

हो रहा बेताब ,

कहीं दूर किसी बसेरे से

माँ अपनी बच्चों को छोड़ने के लिए

खुद को कर रही तैयार ,

कभी कभी माँ की कलेजा बैठ जाती

फिर दिल को मनाती, समझाती

जीवन संग्राम में वो झुकेंगे कैसे?

उम्मीद की किरणों से भरी

ये सुबह बेहद सजग, सशक्त...

लेखक का पता:

मालव्य दास।

हिंदी शिक्षक,

छमरीया हाईस्कूल

शिक्षा खंड : छमरीया, कामरूप।

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