युवा पीढ़ी और आधुनिकता
आधुनिकता मानव समाज का एक ऐसा आवरण है , जिसे ओढ़कर वे स्वयं में बदलाव महसूस करते है । आधुनिकता के विषय में प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ. योगेंद्र सिंह ने कहा , “ साधारणत: आधुनिक होने का अर्थ फैशनेबल से लिया जाता है । वे आधुनिकता को एक सांस्कृतिक प्रयत्न मानते हैं जिसमें तर्क सम्बन्धी मनोवृत्ति , दृष्टिकोण , संवेदना , वैज्ञानिक विश्व दृष्टि , मानवता , प्राद्योगिक प्रगति आदि सम्मिलित हैं । ये आधुनिकता पर किसी एक ही जातीय समूह का स्वामित्व नहीं मानते वरन् सम्पूर्ण मानव समाज का अधिकार मानते हैं । आज मानव अतीत के अंधकार से वर्तमान के उजाले की ओर अग्रसर हो रहे है । युवा पीढ़ी खुद को आधुनिक कहने लगे है । आधुनिकता की दौड़ में कहीं न कहीं युवा पीढ़ी अपनी सभ्यता तथा संस्कृति को खोने लगे है । आलोच्य विषय के अंतर्गत आधुनिकता को लेकर युवा पीढियों की जो मानसिक धारणाएं हैं , उस पर प्रकाश डाला गया है ।
युवा पीढ़ियों में आधुनिकता की अवधारणा :- ‘ आधुनिक ’ कहने से बदलाव का आना अनिवार्य है । बदलते इंसान , बदलता समाज तथा धारणाओं में नवीनता आदि को समेटकर ही आधुनिक शब्द विस्तारित होती है । किसी समाज या व्यक्ति के अंतर्गत आधुनिकता का बोध होता है , तो इसका श्रेय सर्वप्रथम शिक्षा के विस्तारित रूप को दिया जाता है । प्राचीन काल में शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त संकुचित था तथा समाज के एक विशेष वर्ग के लोगों को ही शिक्षा प्राप्ति की सुविधा होती थी । फलस्वरूप समाज के अधिकतर लोग इससे वंचित रह जाते थे । समाज के वर्ग विभाजन की व्यवस्था भी सार्वजनिक शिक्षा में बाधक होने के साथ-साथ स्त्री-शिक्षा का अभाव भी समाज को आधुनिकता की ओर अग्रसर होने में बाधक बने थे । समय के साथ-साथ लोगों की मानसिकताओं में परिवर्तन आने लगे और शिक्षा के प्रचार तथा प्रसार से आधुनिक वातावरण फैलने लगे । आधुनिकता शब्द के अर्थ में कोई समाज खान-पान , वेश-भूषा , आचार-व्यवहार , शिक्षा-दीक्षा आदि कई क्षेत्रों में नवीनता लाने लगे ।
पीढ़ी का अंतर :- अंग्रेजी में जिसे हम ' Generation Gap ' कहते है । पुरानी पीढ़ी और नयी पीढ़ियों के खयालात में काफी अंतर देखने को मिलता है और यही आज के समाज में प्रमुख समस्या के रूप में भी सामने आया है । दोनों पीढ़ियों के खान-पान , रहन-सहन , सोच-विचार आदि अनेक दिशाओं में अंतर आ गया है , जैसे - आज के युवा पढ़ाई या नौकरी करने हेतु अपने जन्मस्थान से दूर रहने पर मजबूर हो जाते है और बाद में अपने माता-पिता के वृद्धावस्था में उनके साथ नहीं रह पाते । फलत: माता-पिता अपने हृदय में वेदना लिए ही चल बसते है । अगर माता-पिता शुरू से ही इस उम्मीद को लेकर नहीं जीते और स्वच्छन्द मन से अपने संतान को उनके भविष्य के लिए आगे बढ़ाते तो शायद यह स्थिति ही उत्पन्न नहीं होता । कुछ युवाओं में यह प्रवृत्ति रहती है कि वह दुसरों को खुद से बेहतर मानते है और इसीलिए मानसिक तनाव में आकर आत्महत्या जैसे अपराध भी कर लेते हैं । अभिभावकों की यह दायित्व होना चाहिए कि वह अपने सन्तान के आत्मविश्वास को जगाए और उसे एक सही रास्ता दिखाए । युवाओं को भी आधुनिकता की दौर में अपनी जमीर को नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि हमारी परम्परा एवं संस्कृति ही विश्व में हमारी पहचान बनाते है ।
आधुनिकता वनाम ' स्व ' का बहिष्कार :- आधुनिक समाज का हिस्सा बनने के चक्कर में आज के युवाओं ने कहीं न कहीं ' स्व ' का बहिष्कार किया है । यहां हम भारतीय समाज को ही देखे तो अधिकतर युवाओं ने आज विदेशी ढंग को अपना लिया है । भारत में अंग्रेजों के शासन के समय से ही एक वर्ग के लोगों में अंग्रेजी के प्रति मोह रह गया । परन्तु अपनी भाषा और संस्कृति को अगर कोई भूल जाए और पश्चिमी सभ्यता की चमक-दमक में खो जाए तो निश्चय ही यह किसी जाति और देश की अस्तित्व के लिए गम्भीर विषय है । जैसे- आजकल के अंग्रेजी माध्यम के स्कुलों की तेज रफ्तार से बढ़ना तथा अभिभावक तथा विद्यार्थियों के मातृभाषा के प्रति हीन भावना एक गम्भीर विषय हैं । क्योंकि सबसे पहले अपनी मातृभाषा को सम्मान देना हमारा कर्तव्य है , फिर दूसरी भाषाओं को सीखने में कोई आपत्ति नहीं । हमारे युवाओं को यह समझना चाहिए कि आधुनिकता का नाम अपने ' स्व ' का बहिष्कार नहीं बल्कि ' स्व ' को अपनाकर ही दुसरों के साथ चलना होगा ।
आधुनिक समाज का प्रतिनिधि बनना :- आज के युवाओं को सबसे पहले खुद में आत्मविश्वास को बढ़ाना होगा तथा उन्हें सुंदर मन तथा स्वस्थ शरीर का अधिकारी बनना होगा । अपने परिवार , देश , अपने आस-पास के प्रकृति तथा पशु-पक्षियों के प्रति दयावान तथा सहनशील होना होगा । जीवन के कठिन परिक्षाओं में खुद को अटल रखकर आगे बढ़ना होना । युवाओं को केवल रहन-सहन तथा हाव-भाव से ही आधुनिक नहीं बनना, बल्कि अपनी चिंताओं को आगे ले जाकर मानसिक रूप में सबल रूप में खुद को प्रतिस्थित बनाना है और इस आधुनिक समाज का प्रतिनिधित्व करना है ।
यथार्थ को समझना :- युवाओं को समाज तथा जीवन के यथार्थता को समझना होगा । इसके लिए माता-पिता को समान रूप में स्थिति से युवाओं को अवगत कराना होगा । यह कार्य केवल यौवनप्राप्त करने पर ही नहीं , शिशु अवस्था से ही बच्चें को दायित्वशील बनाना उनका कर्तव्य होगा । तभी जाकर बड़े होने पर वह स्थिति की वास्तविकता का सामना करने में सक्षम होगा । कुछ माता-पिता खुद कष्ट झेलकर भी बच्चें को विलासी जीवन प्रदान करते हैं । बच्चों को माता-पिता की वास्तविक आर्थिक स्थिति से रुबरु कराना उनका उत्तरदायित्व होता है । बचपन से अगर कोई शिशु आर्थिक स्थिति को समझेगा तो युवावस्था में भी यहीं सोच बरकरार रहेगा । आज का युग प्रतियोगिताओं का युग है । माता-पिता को उनके सन्तानों को समाज में अपनी स्थिति मजबूत बनाने हेतु एक सफल पुरूष एवं नारी के रूप में आगे बढ़ाना है, न की उन्हें प्रतियोगिताओं की घोड़ा बनाना है ।
अहं का त्याग :- किसी भी मनुष्य को सफल बनने हेतु उन्हें सर्वप्रथम अहं भावना का त्याग करना चाहिए । अहं भावना रखकर कोई भी व्यक्ति खुद को समाज तथा मनुष्य मात्र के कल्याण हेतु उत्सर्गित नहीं कर सकता । आज के युवाओं को खुद के व्यक्तित्व को लेकर बिल्कुल भी अहं भावना को नहीं रखना चाहिए तथा अपनी सफलता को सबके साथ बांटकर खुशी को महसुस करना चाहिए । धैर्य के साथ जीवन के कठिन से कठिनतम परीक्षा में खुद की स्थिति को मजबूत बनाकर परिवार तथा समाज को आगे ले जाना प्रत्येक युवाओं का दायित्व होना चाहिए । आत्मकेंद्रिक मनोवृत्ति मनुष्य को अकेला और मानसिक रूप में दुर्बल कर देते है ।
उपरोक्त विवेचन से हम यह अनुधावन कर सकते हैं कि आधुनिकता का आवरण लिए आज के युवाओं को केवल नाम और दिखावे से ही नहीं बल्कि कर्म से भी खुद को आधुनिक समाज के प्रतिनिधि के रूप में सिद्ध करना है । एक सकारात्मक मन से ही व्यक्ति विशेष का कल्याण हो सकता है तथा सही और गलत का फैसला लेने की क्षमता भी लोगों को और अधिक मजबूत बना देते है । आज के युवाओं के लिए आत्मविश्वास को जगाकर आत्मनिर्भरशील होना अत्यन्त आवश्यक है तथा अपनी मातृभाषा , सभ्यता - संस्कृति और परम्परा को साथ लेकर आधुनिक समाज का हिस्सा बनकर खुद को आगे बढ़ाना है ।
डॉ मीनाक्षी देवी l
छयमाइल, गुवाहाटी l
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