सपनों में कल बापूजी आये थे
आँखें खुली हुई थी
बिस्तर से नींद दूर थी
करवटें बदलता रहा मैं
खुली आँखों में गूंज उठा
एक सपना अहिंसा का ।
लकड़ी की खट खट आवाज
उठो, जागो मेरे भाई
देश की मानसिकता सुधारों ।
सिर्फ दो अक्टूबर नहीं
पूरी साल अन्याय से जागो ।
मैं सिर्फ मैं नहीं
समाज और देश का मैं हूँ
अहिंसा को आगे बढ़ाओ
दिवस नहीं, प्रतिदिन मुझे न्याय दो |
कल सपनों में बापूजी आये थे
खुली आँखों में सपने दिखा गये मुझे।
*************************
जुनमणि दास,
हिंदी शिक्षक
छयगाँव सरकारी मजलीया विद्यालय
অলংকৰণ :- মনবীনী দাস
0 Comments