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सपनों में कल बापूजी आये थे | Hindi poem by Junmani Das

सपनों में कल बापूजी आये थे

आँखें खुली हुई थी

बिस्तर से नींद दूर थी

करवटें बदलता रहा मैं 

खुली आँखों में गूंज उठा 

एक सपना अहिंसा का ।


लकड़ी की खट खट आवाज

उठो, जागो मेरे भाई 

देश की मानसिकता सुधारों ।


सिर्फ दो अक्टूबर नहीं 

पूरी साल अन्याय से जागो ।

मैं सिर्फ मैं नहीं 

समाज और देश का मैं हूँ

अहिंसा को आगे बढ़ाओ 

दिवस नहीं, प्रतिदिन मुझे न्याय दो |


कल सपनों में बापूजी आये थे 

खुली आँखों में सपने दिखा गये मुझे। 

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 जुनमणि दास, 

हिंदी शिक्षक 

 छयगाँव सरकारी मजलीया विद्यालय


অলংকৰণ :- মনবীনী দাস

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