भविष्य का दीपक बनने तो दो
नाजुक कलि बिखरी चारों ओर
सुगंध ही सुगंध
मन महकता, भागता फिरता
मानो खुली आसमान से
पंछी उड़ती चारों ओर |
खुशी की एहसास, आशाओं का आंगन
मन की तरंग तथा सपनों की माया नगरी
अनोखी हैं जीवन इनकी
हरियाली भरी बगीचों में
इन कलियों को फुलने दो, महकने दो |
अधिकार हैं इनका
खुशियों का दामन हथेली में लेकर
भविष्य का दीपक बनने तो दो |
ज्ञान की माला गुंथने दो
धागों की राह पर आशीष गिराकर
अपनी काबिलियत को पहचानने तो दो |
अधिकार हैं सबका
भविष्य का दीपक बनने तो दो |
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सुनिता दास
हिंदी शिक्षयित्री
नहीरा एल. एन. सिनीयर बेसिक स्कुल
অলংকৰণ :- মনবীনী দাস
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