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रीढ़ की हड्डी

रीढ़ की हड्डी



नाजुक हाथों से मजबूती देते देते
उसकी लकीरें मिट गयीं,

सारे बच्चें जब चित्र बनाते
वह खुद को ही चित्र बनाकर बैठ जाती।

उसीका चित्र बनाकर बच्चे इनाम जीतते
अमीरों के आलिशान भवन की वह शान बढ़ाते,

उसकी हँसी को ढूंढते चित्रकार
क्या से क्या नहीं करते

रंगीन दांतों की वह टेहरी मुस्कान
तो बस मजबूत ईंट हीं जाने !

बदन पर कीचड़ लपेटे हुए
आँखों में धूल की झोली बिछा लेती वह,

घुटनों के बल बैठकर
दोनों हाथ से प्रहार करती वह,

हर चोट पर उसकी छाती काँपती
कलेजे की धड़कन तेज़ होती --

खून पसीना एक करके
वह पेट की भूख मिटाती।

सूरज की लू उसके पीठ पर
करबते बदलती,

कारखाने की चिंगारी से
उसके सपने की धुँवा निकलती,

उसकी मुँह पर कालिख लगाकर
अमीरों के ख़्वाबों की रंगीन महल बनती।

उसकी दर्द की कराह को सुनिए
देश की रीढ़ की हड्डी को टूटने से बचाए,

मेरे देश की सरकार महसूस कीजिए
इन बाल मजदूरों की रक्षा कीजिए।
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मुकुट कलिता
दमरंग बरजुली एम स्कूल
बोको ब्लॉक, कामरूप, असम



चित्रण : तन्द्रा दे



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