आजादी का अमृत महोत्सव
आजादी का अमृत महोत्सव इस वर्ष अर्थात २०२१ से शुरु होकर २०२३ तक मनाया जायेगा । ब्रिटिश शासन से हमारा देश १५ अगष्ट १९४७ को मुक्त हुआ और हम स्वाधीन हुए । २०२१ में आजादी की ७५ साल पुरे होने के कारण १२ मार्च २०२१ से यह जश्न ७५ सप्ताह तक मनाया जायेगा और १५ अगस्त २०२३ के ७८ वीं स्वतंत्रता दिवस तक यह अमृत महोत्सव मनाया जायेगा ।
आजादी का अर्थ समझाने का प्रयास तथा देशवासियों को अपने स्वतंत्र चेतना जगाने का एहसास, जीवन मुल्यों को सुरक्षित करने एवं नया भारत निर्माण करने की तीव्र तैयारी, नैतिक मूल्यों को जगाने का उद्देश्य ही अमृत महोत्सव का प्रयास है । हम जानते हैं कि आजादी के बाद देश की व्यवस्थाओं में तो परिवर्तन आया, लेकिन मन-बुदिध का विकास कुछ स्तरों पर अब भी न के बराबर है ।
आजादी से पहले भारत की स्थिति जिस तरह थी, उसे हम भलिभाँति परिचित है । किन्तु आजादी के बाद भी कुछ परिस्थितियाँ जैसे की तैसे है । गरीबों पर शोषण, महिलाओं की सुरक्षा, आर्थिक, सामाजिक स्थितियाँ अब भी बदले नहीं । सरकार परिस्थितियों को बदलने की कोशिशे कर रहें है । हम जानते हैं कि अगर सर्व-साधारण अर्थात साधारण नागरिक सुरक्षित नही होंगे, साक्षर नही होंगे, बेटीयॉं सुरक्षित नही रहेंगे, तब देश भी सुरक्षित नहीं रहेंगे । घर का नींव ठीक न होने से जैसे घर ज्यादा समय तक नहीं टीकते, उसी तरह राष्ट्र भी साधारण नागरिकों के उन्नति के बिना कभी भी असली अर्थ में स्वतंत्र नहीं होगा । इसी तरह 'मेक इन इंडिया' की स्वप्न भी तब तक साकार नहीं होगा, जब तक हम अपनी सोच बदलने के लिए सक्षम नहीं होंगे ।
आजादी का यह उत्सव उन लोगों के लिए एक आह्वान हैं, जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, हताश, सत्ताहीन बनकर सिर्फ सफलता की ऊँचाईयों के सपने देखते हैं पर अपनी कमियाँ को मिटाकर आगे बढ़ने की शुरुवात का संकल्प नहीं स्वीकारते हैं । इस महोत्सव का अर्थ या संदेश यही है कि जीवन से पलायन न करके आगे बढ़ने की कोशिश करें, क्यों कि पलायनवादी मनोभाव से अपने आपको ही नहीं बल्कि दूसरों के स्वप्नों को भी निराश की ओर ढकेल देते है ।
जो लोग समय के साथ साथ चलने की कोशिश करते है, उन्हें सफलता प्राप्त होते हैं । समय से पहले समय के साथ जीने की तैयारी का दुसरा नाम है स्वतंत्रता का बोध । वक़्त सिकंदर होता है, इसलिए जरुरी है कि हम वक़्त यानी समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलें ।
आजादी का सही अर्थ है स्वयं की पहचान, सुप्त शक्तियों का जागरण, आत्मनिर्भरता एवं वर्तमान क्षण में पुरुषार्थी जीवन जीने का अभ्यास । जब हम एक पौधा को सींचते है, तब ज्यादातर पत्तों और फूलों के सींचन पर ध्यान देते है, जड़ को भुल जाते हैं । शेष में पत्ते और फूल या पुष्प मुरझा जाते है । इसलिए जड़ को सींचने से ही फल, फूल, पत्ते सभी उजागर रहेंगे। उसी तरह हमें समस्यायों के मुल पर ध्यान देकर आनेवाली पीढ़ियों को समस्या से मुक्त करना ही आजादी के अमृत महोत्सव का असली अर्थ समझ कर हमें आगे जाना चाहिए । यहाँ शिक्षकों की महत्वपूर्ण भुमिका हैं । शिक्षक को समाज का आदि गुरु मानते है, इसलिए गुरु की बातों को लोग सुनते हैं और मानते हैं । नीचले स्तर पर रहनेवाले लोगों तक इसका महत्व पहुचाना हो तो शिक्षकों की सहायता अवश्यम्भावी । अगर हमारे देश का नाम धरती पर स्वर्ण अक्षरों से लिखेने का सौभाग्य हमें प्राप्त होगा, तब शायद हमें गौरव प्राप्त होगा । 'आजादी का अमृत महोत्सव' सफल हो, यही कामना करते है ।
गीता रानी डेका
हिंदी शिक्षिका,
तुलसीबारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ।
शिक्षा खंड : रंगिया, कामरूप ।
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