डर के आगे जीत है
“Accept your past regret, handle your present with confidence, and face your future without fear.”--APJ. Abdul Kalam
डर आत्मविश्वास का सबसे बड़ा दुश्मन है । मनुष्य को अपने जीवन में अनेक डरों का सामना करना पड़ता हैं, कभी कभी तो वह आजीवन उससे उभर नहीं पाता हैं । इंसान जब तक सटीक ढंग से उन डरों का सामना न कर लें, तब तक उनसे पीछा नहीं छुरा सकता और वहीं उसे बाँधता रहता है, वह आगे नहीं बढ़ पाता। गौरतलब है कि इंसान अक्सर डर का सामना करने से ही डरता हैं, कितनी अजीब बात है न ! एक किस्सा है, गणित विषय में बचपन से ही अव्वल छात्रा आठ्वीं कक्षा तक आते आते गणित से डरने लगती है, उसका आत्मविश्वास खोने लगता है और अभ्यास छूटने लगता है, धीरे धीरे उसकी प्राप्तांक 40/45 तक गिर जाती है। वजह ‘गणित विषय का डर’ उसके मन में घर कर जाता हैं और वह इसका सामना नहीं कर पाती है । दसवीं की फ़ाइनल परीक्षा से पहले होनेवाले टेस्ट में जब उसे केवल 32 अंक मिलता है, वह अंदर से हिल जाती है और ज्यादा घबरा जाती है । परंतु उस दिन उसके अन्तर्मन से एक आवाज़ आती है कि आखिरकार ऐसा क्या हुआ कि गणित में 100/100 मिलनेवाली लड़की को 30/32 में सीमित रहना पड़ रहा है..,तब उसने पाया कि बीते 3/4 सालों में गणित के नए नए आयाम आ गए, जिसे समझने में उसे दिक़्क़त होने लगी और प्राप्तांक की कटौती होने लगी । धीरे धीरे गणित की होनहार छात्रा गणित से डरने लगती है और उसका अभ्यास करना छोड़ देती है । उस दिन उसने तय किया कि दसवीं की फाइनल तक चाहे किसी अन्य विषय का अभ्यास करें न करें, पर वह रोज गणित का अभ्यास करेगी । तो बस, यह तय हुआ और दसवीं की फाइनेल परीक्षा में उसने अपने दम पर कूल 70 अंक हासिल कर लिया ।
अपनी लगन और आत्मविश्वास के दम पर इंसान हर लक्ष्य को प्राप्त कर सकता हैं, यह कहानी भी इसी बात को प्रमाणित करती है । डर हमारे आत्मविश्वास को कम कर देता हैं और इंसान अपनी अंदरूनी शक्ति को पहचान नहीं पाता हैं । उपरोक्त कहानी में जिस छात्रा का जिक्र हुआ है, वह मैं स्वयं हूँ । यह मेरी कहानी है या शायद मेरी जैसी कई विद्यार्थियों की, “डर के आगे जीत है” इस कथन का मर्म उस दिन मैंने जान लिया था । कई बार हमारे जीवन में ऐसी स्थिति आ पड़ती हैं कि हमें लगने लगता हैं कि अब और आगे बढ़ नहीं पाएंगे । परंतु अगर हम उस कठिन परस्थिति का डट कर सामना कर लेते हैं तो वह मुश्किल घड़ी निकल जाती हैं और आगे का सफ़र आसान हो जाता है । बहरहाल यह तो तय है कि डर आत्मविश्वास का प्रधान शत्रु है, मनुष्य को इस से उभरना होगा तभी हमारे व्यक्तित्व का पूर्ण विकास संभव होगा ।
डॉ. नंदिता दत्त |
डॉ. नंदिता दत्त
सहायक प्राध्यापिका, हिंदी विभाग ।
नॉर्थ लखिमपुर कॉलेज(स्वायत्तशासित) ।
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