मातृभाषा का महत्व
संस्कृति की वाहक
जीवन की धारक
मातृभाषा हमारी
प्राणों की परिपूरक...
मातृभाषा संस्कृति की वाहिका होती है, मातृभाषा ही हमें संस्कार और व्यवहार सिखाती है | हमारी मातृभाषा हमें सामाजिक स्तर पर परंपरा, इतिहास और सांस्कृतिक तौर पर जोड़ती है। भारत में सैकड़ो प्रकार की मातृभाषाएं बोली जाती है, जो देश की विविधता और अनूठी संस्कृति को बयान करती है।
जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है, उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है। मातृभाषा से हम अपनी संस्कृति के साथ जुड़कर उसकी धरोहर को आगे बढ़ाते हैं।
ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग के शोधकर्ताओं ने शोध में पाया कि जो बच्चे स्कूल में दूसरी भाषा बोलते हैं और परिवारवालों के साथ घर में मातृभाषा का उपयोग करते हैं, बुद्धिमत्ता जांज में वह ज्यादा बुद्धिमान होते हैं।
मातृभाषा को बढ़वा देने का उद्देश्य दुनिया में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिकता को बढ़वा देना है। आज विश्व में भारत की भूमिका और भी अधिक मायने रखती है क्यों कि भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है।
भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने लिखा है-
“निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल”
अर्थात मातृभाषा के बिना किसी भी प्रकार की उन्नति संभव नहीं है। अगर हमको पालनेवाली ‘माँ ’ होती है, तो हमारी भाषा भी हमारी माँ है। हमको पालने का कार्य हमारी मातृभाषा भी करती है, इसलिए ‘माँ ’और ‘मातृभाषा’ को बराबर दर्जा दिया गया है।
असमिया साहित्यकार हिरेन भट्टचार्य जी ने मातृभाषा के महत्व पर प्रकाश डालकर कहा था कि आप अंग्रेजी अच्छा लिखो या बुरा उससे अंग्रेजी भाषा पर कुछ फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जो लोग असमिया यानी मातृभाषा में अध्ययन करते हैं , अगर वह लोग अपनी मातृभाषा को शुद्ध रूप से न लिखे, तो उसका कु-प्रभाव उस भाषा पर पड़ता है, जिससे उस भाषा की क्षति होता है|
मातृभाषा में शिक्षण बच्चों के मानसिक विकास हेतु बहुत लाभदायक होता है। मातृभाषा के द्वारा हम जो सीखते हैं, वह संसार की अन्य किसी भाषा के द्वारा नहीं सीख सकते हैं। पाठ्यक्रम में मातृभाषा का स्थान महत्वपूर्ण होता है | हम जितनी अधिक भाषाएँ जानेंगे, सीखेंगे, हमारे लिए उतना ही उत्तम होगा। हम जिस किसी भी प्रांत, राज्य से हैं हमें वहाँ की गिनती, बाल कविताएँ, लोकगीत, दोहे आदि सिखने का कोई भी मौका नहीं गवाना चाहिए।
मातृभाषा में बच्चों का बात न करना अब एक फैशन हो गया है। इससे गाँव और शहर के बच्चों में दूरियां बढ़ती जा रही हैं। गाँव के बच्चे जो सब कुछ अपनी लोकभाषा में सीखते, वह बच्चे अपने को हीन और शहर के बच्चे जो सब कुछ अंग्रेजी में सीखते है, स्वयं को श्रेष्ठ, बेहतर समझने लगे हैं। इस दृष्टिकोण में बदलाव आना चाहिए। हमारे बच्चों को अपनी मातृभाषा और उसी में ही दर्शनिक भावों से ओतप्रोत लोकगीत का आदर कराना सिखना होगा, नहीं तो मातृभाषा का महत्व खो देंगे।
मातृभाषा पर ही अन्य सभी विषयों की योग्यता, पूर्णता और सफलता का भार होता है, ज्ञान तथा मस्तिष्क का विकास मातृभाषा द्वारा ही संभव हो सकता है। सरकार भी मातृभाषा का महत्व पर प्रकाश डालकर नई शिक्षा नीति- 2020 में मातृभाषाओं को पुन:जीवित करने का प्रयास किया है |
मातृभाषा को संरक्षण नहीं मिलने की वजह से भारत में लगभग ५०(50)मातृभाषाएं पिछले ५(5)दशकों में विलुप्त हो चुकी है। आज जरुरत है कि हमें अपनी अपनी मातृभाषा को अपनाये और आनेवाली पीढ़ी को सिखाये, ताकि भाषा के जरिये हमारी संस्कृति हमेशा आगे बढ़े। मातृभाषाओं के अस्तित्व को बचाने और उनको बढ़वा देने हेतु प्रत्येक वर्ष २१(21)फरवरी को अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस भी मनाया जाता है।
मातृभाषा पर महत्व देते हुए कहा जाता है -
“मातृभाषा विन व्यर्थ है दुनिया का सब ज्ञान
पुरखों की है बोली जो, करो उसका सम्मान ”
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बन्दना शर्मा |
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सत्रपारा आइडियल हाईस्कूल l
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