सफ़र
एक नये सफ़र का
मैं भी हिस्सा बना
सब लोग झुंड में चले थे
मैनें भी एक झुंड का सहारा लिया
और इसी झुंड के बीच खो - गई
अपनी वजूद को ढूंढते-ढूंढते ।
सड़कों पर भागा-दौड़ी
सफ़र की बेबाक खुशी
बिखरी पड़ी चारों ओर
जैसे मोतियाँ बिखरती
अपनी धागों से ।
रेत पर पड़ी अनगिनत पैरों के निशान
समेत कैसे लू ?
सफ़र भी धूँधली होने लगी धीरे - धीरे
अब खुदको देखने की बारी !
और सड़़क पर क्या हुआ !
उसे तो हर कोई देखा ही होगा ?
सफ़र की राह पर न जाने
कितनी कहानी का दास्तान
उजागर होना है बाकी !
आरजु पैगाम दिये बिना
एक नयी दहलीज़ पर दस्तक देगी ।
सड़कों पर फिर भागा-दौड़ी
सफ़र का आनंद लेने होगी !!
सुनिता दास l
हिंदी शिक्षिका,
नहिरा एल एन सिनियर बेसिक स्कूल l
शिक्षाखंड : रामपुर, कामरूप l
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