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सफ़र l Hindi Poem by Sunita Das

 सफ़र

एक नये सफ़र का

मैं भी हिस्सा बना

सब लोग झुंड में चले थे

मैनें भी एक झुंड का सहारा लिया

और इसी झुंड के बीच खो - गई 

अपनी वजूद को ढूंढते-ढूंढते ।


सड़कों पर भागा-दौड़ी 

सफ़र की बेबाक खुशी 

बिखरी पड़ी चारों ओर 

जैसे मोतियाँ बिखरती

अपनी धागों से ।


रेत पर पड़ी अनगिनत पैरों के निशान

समेत कैसे लू ?

सफ़र भी धूँधली होने लगी धीरे - धीरे

अब खुदको देखने की बारी !

और सड़़क पर क्या हुआ !

उसे तो हर कोई देखा ही होगा ?


सफ़र की राह पर न जाने

कितनी कहानी का दास्तान

उजागर होना है बाकी !

आरजु पैगाम दिये बिना 

एक नयी दहलीज़ पर दस्तक देगी ।


सड़कों पर फिर भागा-दौड़ी

सफ़र का आनंद लेने होगी !!

सुनिता दास l

हिंदी शिक्षिका,

नहिरा एल एन सिनियर बेसिक स्कूल l

शिक्षाखंड : रामपुर, कामरूप l

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