नारी
नारी ! तुम केवल शब्द मात्र नहीं
सम्पूर्ण जगत की एक अनुपम सृष्टि हो I
सृष्टि के निर्माण में अहम् भूमिका जिसने निभाई हो II
नारी ! तुम अनंत हो
नदी की धारा के समान स्रोतस्विनी हो I
तुम करुणामयी , ज्ञानदायिनी , शक्तिस्वरूपा हो I
अपने विशाल नेत्रों से जग में ,
दया , क्षमा का भाव विस्तारित करती हो II
नारी ! तुम ममतामयी हो ,
परन्तु अबला नहीं I
कार्यशीला हो ,
परन्तु शापित नहीं I
प्रेम और सौंदर्य के प्रतीक हो ,
परन्तु भोग की सामग्री नहीं II
नारीविहीन जग जो है कल्पनातीत ,
तो नारी ही क्यूं हुए अवांछित I
नर-नारी की समता मानकर चले जो कोई ,
उन्नति की शिखर पर पहुंचे ,
रोक सके न उसे कोई II
डॉ. मीनाक्षी देवी
छ्यमाईल , गुवाहाटी
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