header ads

হিন্দী কবিতা, बाल - श्रमिक, बिभा देवी

 बाल - श्रमिक




हँसता-खेलता जिन्दगी
पाठशाला में बीतना जहाँ
अफसरों के घर
वर्तन माँजते-माँजते
बीताना कैसा ?
किसी के नाजुक हाथ में पुस्तक ,
किसी के हाथ में हथौड़ा ।
किसी के वदन पर इउनिफार्म ,
किसी के वदन पर फटा कपड़ा ।
कोई लिफ्ट से चीढ़ी चढ़ता,
किसी के बने ईंट पर इमारत बनता ।

हे ईश्वर --
फ़र्क क्या तुमने बनाया ?
बाल मजदूरों का ईश्वर बनकर,
हाथ-पैर कटवाकर
किसने भीख मँगवाया ?
आओ जागें --
अफ़सर से मानव बनें
ठेकेदार से इन्सान बनें
न रहे भारत में बाल श्रमिक
हर बच्चा अपनी जिंदगी जिए ।





बिभा देवी
गदेबरी मध्य अंग्रेजी विद्यालय
शिक्षाखंड : रामपुर

Post a Comment

0 Comments