कैसे कहूँ मैं
ये जिंदगी कितने रंग लिए चलते है
ख्वाब टूट जाते है ,
मगर आखिरी सांस तक
अरमानों के दिये जलाना
न कभी भूलते है ।
कैसे कहूँ मैं
उलझनों को सुलझाते
हालातों से खुद उलझ जाते हैं
यादों के सहारे बस
जिंदगी गुजर जाती है ।
कैसे कहूँ मैं
अपने लफ्ज़ ही आज
कम पड़ गए है ,
रंगों से भरी इस दुनिया में
किसी की सिसकियां हम सुन रहे हैं ...
डॉ मिनाक्षी देवी
छयमाइल , गुवाहाटी
0 Comments