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হিন্দী কবিতা, मैं भूमि हूँ, सुनिता दास,

 

मैं भूमि हूँ



मैं भूमि हूँ
सबका पालन-पोषण करती हूँ
सबका ख्याल रखती हूँ
मैं भूमि हूँ ।

दु:ख कष्ट सहती हूँ
सबका बोझ उठाती हूँ
मैं भूमि हूँ ।

धीर सहनशील होकर
हमेशा शांत रहती हूँ
अपनी गोदी में
लाखों गंदगी छूपाती हूँ
मैं भूमि हूँ ।

हरियाली  चारों ओर बिखराती हूँ ।
अपनी सहजता और कोमलता से ,
सबको संतुष्टी प्रदान कराती हूँ
मैं भूमि हूँ ।

मातृत्व के स्नेह व प्रेम ...
सभी प्राणीओं पर लुटाती हूँ ।
मैं भूमि हूँ ।

पर ...
मेरे प्यार का किया मनुष्य ने
तिरस्कार ।
अपनी खुशी के लिए दिया मेरा बलिदान ।
प्रकृति का किया विनाश ,
इसलिए मैं हूँ नाराज़ ।

समय है , संभल जाओ !
नहीं तो अपनी गलतीओं का मोल चुकाओ ।

अत:
अपनी विनाश को रोकना है तो ...
प्रकृति को हरा-भरा बनाओं ,
प्रत्येक जींवो का करो तुम आदर
मेरे प्यार और त्याग का रखकर मान !



सुनिता दास  
हिंदी शिक्षिका
नहिरा एल० एन० सिनियर बेसिक स्कूल
शिक्षा खंड : रामपुर

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