header ads

बरपेटा की दौल उत्सव : विश्वास और परंपरा, बन्दना शर्मा, ৪ৰ্থ বছৰ ৩য় সংখ্যা,

 बरपेटा की दौल उत्सव : विश्वास और परंपरा






हरे, नीले रंग का
खुशियों का त्यौहार
है होली...
दु:ख गम भुलाकर
आनंद खुशियों से
सबको एक साथ जोड़कर
आनंद, सद्भाव का त्यौहार
है होली...
सबकी दिलों में
भाईचारा , प्यार जगाए
एकता का त्यौहार
है होली...


          रंगों का त्यौहार होली समस्त भारत में मनाया जाने वाला एक पारम्परिक त्यौहार है । यह मुख्य रूप से फाल्गुन महीने की पूर्णिमा के दिन वसंत के आगमन हेतु मनाया जाता है । असम के बरपेटा जिला में महापुरुष श्री श्री माधवदेव द्वारा स्थापित सत्र (वैष्णव मठ ) में बड़े ही उत्साह और हर्षोल्लास एवं धार्मिक विधि विधान से होली उत्सव अथवा दौल उत्सव मनाया जाता है । होली उत्सव के दौरान बरपेटा में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम जैसे- घोषा
कीर्तन, दलीय(वृंद)बरगीत, माटी आखरा, लोकगीत, सत्रीया नृत्य, कृष्ण नृत्य, दलीय(वृंद)होली नृत्य, खोल वादन, भोरताल नृत्य, बरगीत, झुमुर नृत्य आदि विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता हैं ।
बरपेटा सत्र में होली पुरी तरह से भगवान श्री कृष्ण पर समर्पित होता है । इसलिए यहाँ रंगों के बीच धार्मिक मान्यताएँ भी लोगों को अपनी ओर पूरी तरह से आकर्षित करती हैं ।
बरपेटा में श्री कृष्ण दौल महोत्सव का शुभारम्भ श्री कृष्ण महोत्सव सत्रीया रीति-रिवाज और परंपरा के साथ जुड़ा हुआ है । पहले दिन आतिशबाजी यात्रा (गोंधयात्रा ) के दिन शाम को सत्र में दैनिक नाम प्रसंग के बाद दौल (भगवान ) को सत्र के मनिकुट गृह (भाज घर ) से गायन-वायन और ढोल-नगाड़े के बीच पूर्ण द्वार से बाहर निकालकर सत्र के
चौताल (प्रांगण) में रखा जाता  है । वहीं कलिया ठाकुरजी (श्री कृष्ण) को मुख्य द्वार से बाहर लाकर गोहाई (भगवान ) सत्र के आंगन पर एक बड़ा आसन पर बैठाया जाता है । इस बीच भक्तों द्वारा गायन वायन एवं ढोल-नगाड़े बजाए जाते हैं । साथ ही दोनों भगवान को मेजी (आग) तपवाने के लिए लाया जाता है । तत्पश्चात भगवान को सत्र के मुख्य स्थान पर जैसे ही लाया जाता है, वैसे ही आतिशबाजी शुरू हो जाती है ।
दौल महोत्सव के दूसरे और तीसरे दिन  )'भर दौल' यानी एक दूसरे को गुलाल (रंग) लगाने की रश्म निभाई जाती है, इस दौरान सबसे पहले सत्र के बुढ़ासत्रिया (पुजारी) जी द्वारा गुलाल (रंग) भगवान को चढ़ाने की परंपरा शुरू होती है ।
दौल उत्सव के अंतिम दिन फगुवा (होली ) जो बरपेटा का विख्यात रंग-उत्सव माना जाता है, आरंभ होता है । उस दिन भगवान प्रभु श्री कृष्ण को बरपेटा सत्र से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर कलबारी सत्र में हैकता खिलाने के लिए ले जाया जाता है । उसके बाद भगवान को पुनः बरपेटा सत्र में लाकर पुनः पारंपरिक खेलों का आयोजन होता है, जिसमें कच्चे बांस के दोनों छोर को पकड़कर पुरुष तोड़ते हैं । चार-पाँच बांस को तोड़ने के बाद इस खेल का समापन होता है ।
बरपेटा के लोगों के लिए यह त्योहार  ठंडी सर्दियों के मौसम के अंत और गर्म मौसम के आगमन का प्रतीक है । यह त्योहार एक नए कृषि चक्र की शुरुआत और फसल के मौसम के आगमन का संकेत देता है ।
बरपेटा के फल्गुत्सव की लोकप्रियता का एक अन्य कारण इसका
सांस्कृतिक महत्व है । ऐसा माना जाता है कि यह प्रथा भगवान विष्णु और राजा हिरण्यकशिपु प्राचीन हिंदू कथा से उत्पन्न हुई है और बुराई पर अच्छाई की विजय प्रतीक है ।
होली सामाजिक एवं सामुदायिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण त्योहार है । इससे समुदाय के बीच एकता और सद्भाव की भावना को बढ़ावा देने में मदद मिलते हैं ।
बरपेटा के लोग होली के त्योहार को इसके समय,
सांस्कृतिक महत्व, सामाजिक और सामुदायिक पहलू और लोगों को एक साथ लाने की क्षमता के कारण सबसे अधिक पसंद करते हैं । यह त्योहार वास्तव में बरपेटा की जीवन संस्कृति  और परंपराओं का सार दर्शाता है ।
            


बन्दना शर्मा
हिंदी शिक्षिका
सत्रपारा आइडियल हाईस्कूल
शिक्षा खंड : रामपुर

Post a Comment

0 Comments