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হিন্দী কবিতা, मेरी देवी मेरी माँ, मुकुट कलिता, ৪ৰ্থ বছৰ ৩য় সংখ্যা

 मेरी देवी मेरी माँ





मैं वह चित्रकार नहीं
जो तुम्हारा चित्र बना सकूँ
जितनी कोशिश मैं करूँ
उतनी बार नाकामयाब हो जाऊँ

तेरी चमक के सामने
मेरा हर रंग फीका पड़ता है
तुम्हारी मुस्कान के सामने
मेरी सारी कलाएँ बेअसर हो जाती हैं

विश्वास किजिए
जितनी कोशिश मैं करता
तुम्हारी चित्र उतना ही मैं फिका फिका देखता

मेरी रंगों में वह चमक कहा 
जो तुम्हारी रंगों के बराबर बने
मेरी रंगों में वह खुशबू कहा 
जो तुम्हारी मन की खुशबू
महसूस कर सकें

गम के आंसू पिकर 
सुखी दिखाने का तुम्हारा वह मन्त्र
आज भी तो मेरे लिए पहेली है
सबसे बड़ी पहेली माँ

तु तो बस तु ही है
मेरी माँ...

दुसरी देवी तो मैंने नहीं देखी
तु ही मेरी असली देवी है
मेरी जिंदगी है ।

मेरी देवी का सही चित्र
मैं बना नहीं सकती माँ ।



मुकुट कलिता
हिंदी शिक्षक
दामरंग बरजुलि मध्य अंग्रेजी विद्यालय
शिक्षाखंड : बको

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