आवभगत
वो आए थे
पेड़-पौधा बनके
इमारत के लिए उसको टुकड़े-टुकड़े किया
इमारत में अभी ऑक्सीजन रहते नहीं !
वो आए थे
निरपेक्ष बनके
खातिरदारी की बजाय
हमने उसको बाँट लिया
हिन्दु - मुस्लिम -ईसाई
गुम हो गया वह ।
वो आए थे
साथी बनके
आवभगत की राह में मिला
लिंग आधारित उत्पीड़न ।
अशिक्षित मानसिकता को छोड़ना पड़ा ।
वो आए थे
सतता की फूल से
मेहमानदारी बाग को कुटिलता ने धोखा दिया ।
प्रार्थना की आकाश में सूरज निकलता ही है
फूल खिल उठी ।
वो आए थे
खुली हुई खिड़की बनके
खुली हवाओं ने उसे अभिवादन किया
सिर्फ पद के दरवाजे को पहचाननेवाले को क्या पता निःस्वार्थ नाम का अमृत भी है ।
मनबीनी दास
हिंदी शिक्षिका
घटनगर मध्य इंराजी विद्यालय
शिक्षाखंड : छयगाँव
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