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হিন্দী প্ৰবন্ধ, विद्यालयी शिक्षा में संग्रहालयों की भूमिका, मालव्य दास, ৫ম বছৰ-১ম সংখ্যা

 विद्यालयी शिक्षा में संग्रहालयों की भूमिका




नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आधार पर विद्यालयी शिक्षा में संग्रहालयों की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है । वैसे तो संग्रहालयों की शुरुआत हमारे देश में बहुत पहले हो चुकी है । लेकिन उसको औपचारिक रूप से विद्यालयी शिक्षा के साथ जुड़ने का काम जारी है । संग्रहालयों की इतिहास के पन्नों को पलटने से हमें पता चलता हैं कि भारतवर्ष में सबसे पहले सन 1814 ई० में एशियाटिक सोसाइटी अव् बेंगल द्वारा इम्पीरियल म्यूजियम अव् कोलकाता नामक संग्रहालय की स्थापना की गई थी । स्वतंत्रता के बाद इनके नाम बदलकर भारतीय संग्रहालय (इंडियन म्यूजियम) रखा गया । कोलकाता स्थित भारतीय संग्रहालय को भारत का सबसे बड़ा संग्रहालय कहा जाता है और विश्व में इसे नौवीं स्थान प्राप्त है । इस संग्रहालय में प्राचीन बुद्ध वीथिका से लेकर मुगलों के चित्र वीथिका तक कई श्रेणी के वीथी संग्रहित एवं सुरक्षित हैं । प्रायः 4000 साल पुरानी मिस्र देशीय मानव ममी भी इसी संग्रहालय में सुरक्षित मौजूद है । अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद के अनुसार वर्तमान विश्व में करीब 55000 संग्रहालय हैं और भारत में प्रायः 1000 संग्रहालय हैं । भारत के बेंगलुरु शहर को 'संग्रहालय के शहर' कहा जाता है ।

केवल प्राचीन चीजों को संग्रहीत कर किसी जगह रखने की परंपरा को संग्रहालय कहने की धारणा से हमें बाहर निकलने की जरूरत हैं । समयानुसार संग्रहालय की धारणा में भी परिवर्तन हो रही है । आधुनिक तकनीक के उपयोग से संग्रहालय की व्यापकता में बृद्धि हुई है । हमारी प्राचीन ऐतिहासिक संस्कृति, विरासत से नवयूग को परिचित कराने में संग्रहालय महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । संग्रहालय से हम आध्यात्मिक, इतिहास, शिल्पकला, मूर्तिकला आदि के अलावा विश्व के अनेक साहित्य, सभ्यता आदि के ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । संग्रहालय में सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए सुविधाएं प्रदान करने की व्यवस्था होनी चाहिए । आजकल आधुनिक साधनों के प्रयोग से हम विद्यालय में बहुत अच्छा आधारिक संरचना न होने के बावजूद भी संग्रहालय निर्माण कर सकते है । डिजिटल अभिलेखागार की मदद से हम तथ्यों को सुरक्षित कर रख सकते हैं । संग्रहालय एक शैक्षिक संस्थान न होते हुए भी व्यापक दृष्टि से एक शिक्षात्मक व्यवस्था मात्र है । संग्रहालयों में रखी गई सामग्रियों से हमें देश और दुनिया के गौरवशाली इतिहास के बारे में जानकारी मिलती हैं ।

असम के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो विद्यालयी शिक्षा में संग्रहालयों की भूमिका या परिचय एक नवीन विचारधारा है । वैसे तो असम में सरकारी और गैर-सरकारी संग्रहालयों की संख्या उतना अधिक नहीं हैं । मुख्य रूप से असम राज्यिक संग्रहालय, आंचलिक विज्ञान केंद्र, श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र, असम वन संग्रहालय, ताई आहोम संग्रहालय आदि उल्लेखनीय हैं जो असम की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और इतिहास को प्रदर्शित करते हैं । असम राज्यिक संग्रहालय में शिलालेखों, पत्थर, सिक्के, ताम्रपत्र, लकड़ी, धातु और मिट्टी की मूर्तियों का विस्तृत संग्रह हैं । औपचारिक शिक्षा पद्धति से बच्चें जो कुछ सिखते है, एक संग्रहालय उसको वास्तविक स्वरूप से परिचित कराने का काम करते हैं । एक संग्रहालय परम्परागत कक्षा से अधिक वास्तविक शिक्षा अनुभव प्रदान कराता है । विद्यार्थियों में अंतर्निहित प्रतिभा विकसित करने हेतु एक संग्रहालय द्वारा अनेक गतिविधियाँ जैसे चित्रांकन, मूर्तिकला, हस्तशिल्प निर्माण आदि प्रतियोगिता आयोजित कर सकते हैं । संग्रहालय विद्यार्थियों को कला, सभ्यता, इतिहास, भूगोल, पुरातात्विक स्थलों के महत्व आदि पर शोधकार्य करने का अवसर प्रदान करता है । असम में अनेक जाति-जनजातियों के लोग निवास करते हैं । उनके अपने रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा होते हैं जो सामाजिक व सांस्कृतिक मुल्य और समाज के परंपराओं को दर्शाती है । इनसे जुड़े सामग्रियाँ संग्रहालय में एक साथ संरक्षित और प्रदर्शित किया जा सकता हैं । विद्यार्थियों को एक ही मंच पर लाकर अनेक विषयों पर ज्ञान प्राप्त कराने का काम संग्रहालय कर सकते हैं । संग्रहालय में प्राचीन धरोहरों के साथ स्थानीय साहित्य, चित्रकला आदि की संयोग देखने को मिलता है , जिससे लोगों के बीच सांस्कृतिक विचारों के विनिमय होते हैं ।
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अन्तर्गत सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र इस दिशा पर निरंतर कार्यरत है । प्रस्तुत केंद्र की तरफ से देशभर के सेवारत शिक्षकों को प्रशिक्षित कराने का कार्य चल रहा है । नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आधार पर देश के हरेक शैक्षिक संस्थानों पर संग्रहालय की स्थापना का लक्ष्य है । विद्यालय में संग्रहालय कोना (म्यूजियम काँँर्नर) के निर्माण से विद्यार्थियों को संग्रहालय के प्रति आकर्षित की जा सकती है । संग्रहालय को शिक्षण के मंदिर अथवा ज्ञान के मंदिर से तुलना करना अतिशयोक्ति न होगा । संग्रहालय में विद्यार्थियों को एक ऐसा जगह मिलता है, जहाँ वे दृश्य-श्रव्य माध्यम से हो या खुद अपनी व्यावहारिक पद्धति से नई नई चिजों को तलाशते हैं । इससे विद्यार्थियों के मन में आत्मविश्वास के साथ साथ स्व: अध्ययन में रूचि बढ़ता हैं । इस तरह देखा जाता है कि संग्रहालय को एक पर्यटन या ज्ञान विकास केंद्र के रूप में भी हम विकसित कर सकते हैं ।



मालव्य दास
हिंदी शिक्षक
छमरीया हाईस्कूल
शिक्षाखंड : छमरीया, कामरूप

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