रूपकोंवर ज्योतिप्रसाद और जयमती
हर साल १७ जनवरी को असम में 'शिल्पी दिवस' मनाया जाता है। असम की महान शिल्पी ज्योति प्रसाद अग्रवाल जी के मृत्यु दिवस पर यह 'शिल्पी दिवस' मनाया जाता है। ज्योति प्रसाद अग्रवाल जी एक सम्पूर्ण कलाकार थे। साहित्य के हर क्षेत्र में इन्होंने अपनी छाप छोड़ी है। वह असाधारण प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। केवल ४८ वर्ष की उम्र में ही ज्योति प्रसादजी ने जो कुछ किया, लोग आश्चर्य चकित हो जाते है कि किस तरह एक व्यक्ति ने इतने कम समय में अपने साहित्यिक प्रतिभा प्रदर्शन कर सकते है! क्या नहीं थे ज्योतिप्रसाद ! गीतकार, संगीतकार, कवि, नाट्यकार, फिल्मनिर्मता आदि। आठवीं कक्षा में ही इन्होंने 'शोणित कुंवरी' लिखा था। इसके बाद इन्होंने एक के बाद एक नाटक, कविता, गीत आदि लिखते गए। ज्योति प्रसाद के अद्भुत कलाकारी को देखते हुए ही उन्हें 'रूपकुंवर' नाम से सम्मानित किया गया।
ज्योति प्रसाद जी के
विशाल प्रतिभा
को थोड़े
शब्द में
बयान करना
असम्भव है।
१९३३ सन
में ज्योति प्रसाद जी
ने प्रथम
असमीया फ़िल्म' जयमती' का
निर्माण का
काम शुरू
किया था
और बहुत
मुश्किलों के
बाद उन्होंने
१९३५ में
'जयमती' का
निर्माण समाप्त
करके उसे
शुभमुक्ति देने
में सफलता
हासिल किया
था। यह
उनका दु:साहस था,
क्योंकि उस
समय असम
में फिल्म
निर्माण करने
का उपयुक्त
परिवेश नहीं
था। सीमित
सुविधा होते
हुए भी
इन्होंने विदेश
में अर्जित
किया फिल्म
निर्माण की
ज्ञान से जयमती निर्माण
किया। जयमती असमीया सिनेमा
की बुनियाद
है। उस
समय असम
में महिलाओं
को अभिनय
करना मना
था। इसलिए
कोई महिला
अभिनय करने
के लिए
प्रस्तुत नहीं
थी| ज्योति प्रसाद ने इस
अवस्था का
भी सामना
किया और
उनके प्रयास
से ही
दो-तीन
महिलाएं अभिनय
करने के
लिए राजी
हुए।
तेजपुर जिला
का भोलागुरी
चाय बागान
में चित्रबन
नामक स्टुडियो
निर्माण करके जयमती का
शूटिंग किया
गया था।
गुवाहाटी के
आस-पास
के पहाड़ी
इलाकों में
भी शूटिंग
हुई थी।
गोलाघाट के 'आइदेउ
संदिकै' ने जयमती के
नाम भूमिका
पर अभिनय
की थी|
वह उस
समय १६
साल की
युवती थी।
गदापाणि की
भुमिका में
अभिनय किया
था फुनु
ब्रूना ने।
लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ
के नाटक
सती जयमती के आधार
पर जयमती का निर्माण
हुआ था। जयमती को
व्यवसायिक सफलता
नहीं मिलने
के कारण ज्योतिप्रसाद जी
को बहुत
ही आर्थिक
नुकसान हुआ
था। फिर
भी वह
निराश न
होकर दूसरी
असमीया फिल्म
निर्माण की
ओर बढ़ा।
हम ज्योतिप्रसाद जी को
लेकर बहुत
गर्व अनुभव
करते हैं
कि एैसा
महान और
असाधारण शिल्पी
हमारे असम
में, पैदा
हुए। उनके
गीत, कविता,
नाटक, फिल्म
आदि के
द्वारा वह
हमारे बीच
हमेशा जीवित
रहेंगे।
तरा बायन
सहकारी शिक्षयित्री
बालासिद्धि आंचलिक
एम. ई.
स्कूल
छयगाँव ब्लॅाक
चित्रण : संगीता काकति
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